सिलसिला आलिया साग़रया की तालीमात

Khanqah e Chishtiya
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ईमान बिल्लाह 

इस्लाम की बुनियाद कलिमा तय्यबा पे है और जिस का पहला जुज़ ही ला इलाहा इल्लल्लाह है यानी अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं । इस कलिमें को मानने वाले मोमिन वा मुस्लिम कहलाते हैं। मोमिन वो है जो अल्लाह की ज़अत पे पुख़्ता यक़ीन रखे और उस के साथ किसी को शरीक न करे । ख़ुदा की ज़ात का इंकार कुफ्र है और उसकी ज़ात वा मज़ात और हुकूक वा अख्तियारत में किसी को शरीक करना शिर्क है और ये दोनों बड़े गुनाह हैं।

    सूर ए इखलास में भी साफ तौर से कह दिया गया है की खुदा एक है वो हर शर से बेनियाज़ है (यानी सब उसके मोहताज हैं वो किसी का मोहताज नहीं) वो न किसी की औलाद है और न कोई उसकी औलाद (यानि वो माँ ,बाप,बेटा,बेटी,और तमाम खानदानी रिश्तों से बलातर है) उसका कोई हमसर नहीं।

  आयतलकुर्सी में भी अल्लाह की वहदानियत और उसकी सफात का तज़किरा किया गया 

    अल्लाह वो ज़िंदा जावेद हस्ती है जिसके सिवा कोई दूसरा अल्लाह नहीं। ज़मीन वा आसमान की सारी चीज़ों को वही संभाले हुए है । उसे न ऊंघ आ सकती है न नींद । आसमानो और ज़मीन की सारी चीज़ों का मालिक वही है। कौन है जो उसकी जनाब में उसकी इजाज़त के बगैर शफाहत करे। वो खुले और छिपे को जानता है। लोग उसके इल्म को ज़रा भी नहीं पा सकते मगर वो ख़ुद जितना इल्म किसी दूसरे को देना चाहिए इसका इक़्तेदार आसमानो और ज़मीन पे छाया हुआ है और उनकी हिफाज़त से वो नहीं थकता । वो बहुत बुलंद वा बरतर है।आमीन। बाक़ी अगले बाब में,,,,,,,,,,,,,,,,     

हमारी ज़िंदगी पे अकीदा तौहीद का असर

अकीदा वा अमल का एक दूसरे से गहरा ताल्लुक है। जब हम खुदा की वाहदानियत और उसकी मदात के क़ायल हो जाते हैं तो तमाम फरज़ी खुदाओ की बंदगी से आज़ाद हो जाते हैं। दुनियां की किसी ताक़त से नहीं डरते और न किसी से मरऊब हैं। मुश्किलात के वक्त और मुसीबत में सिर्फ उसी से मदद मांगते हैं और उसी पे भरोसा करते हैं उसकी नाफरमानी से बचते हैं और हक़ वा इंसाफ पे क़ायम रहते हैं । हम कभी मायूस और रंजीदा नहीं होते खुशहाली में ख़ुदा का शुक्र अदा करते है और तंगदस्ती में सब्र करते हैं। हमे नेक काम से खुशी हासिल होती है और बुरे काम से नफ़रत। मुख़्तसर ये की अल्लाह पे ईमान लाने के बाद हम में बहुत सी खूबियां पैदा हो जाती हैं और हम दुनिया में बेखौफ़ ख़तर ज़िंदगी ज़िंदगी गुज़ारते हैं ।

ईमान बा मलाइका 

अगरचे फरिश्ते दिखाई नहीं देते लेकिन ये भी अल्लाह की मख़लूक हैं और अल्लाह तआला ने उन पर ईमान लाने का हुक्म दिया है। हमे फरिश्तो की हक़ीक़त अच्छी तरह मालूम नहीं अलबत्ता उनके काम उनकी सिफ़तें बताई गईं हैं ।मसलन नूर से पैदा किए गए हैं ,और अल्लाह ने उन्हें मुख़्तलिफ कामों पर मामूर किया है। किसी को हवा पर, तो किसी को रोशनी और पानी पर। लेकिन ख़ुदा की ख़ुदाई में उन्हें ज़र्रा बराबर दख़ल नहीं। वो हर काम ख़ुदा के हुक्म के मुताबिक़ करते हैं। यानी वो इंतेहाई फ़रमाबरदार मख़लूक हैं । हर वक्त अल्लाह की इबादत मे मसरूफ रहते हैं। अपनी मर्ज़ी से कोई काम नहीं करते। लेकिन मुशरिकों,ने फरिश्तों को भी ख़ुदाई मे शरीक कर लिया। अरब के मुशरिक उन्हें ख़ुदाई बेटा कहते थे और उनकी मुर्तियां बना कर पूजते थे। उनका अक़ीदा था कि अल्लाह फरिश्तों की सिफ़ारिश क़ुबूल करता है। हालांकि अल्लाह के मुक़ाबले में सारी मख़लूक बेबस वा लाचार है। फ़िर ये कि इन्सान अशरफुल मख़लूक़ात है। अल्लाह पाक ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को फरिश्तों से‌ सिजदा कराया था जिस का मतलब ये है कि इन्सान फरिश्तों से अफ़ज़ल है। अब इससे बड़ी जिहालत और क्या हो सकती है कि वही इंसान फरिश्तों के आगे सिर झुकाऐ अलबत्ता उनके वजूद से इन्कार कुफ्र है। अल्लाह के रसूलों ने जिन मशहूर फरिश्तों के नाम और उनके काम के बारे मे बतलाया है उसका ज़िक्र अगले बाब में होगा। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

हज़रत जिब्रील अलैह सलाम 

इनको रूहुल अमीन भी कहते हैं,ये फरिश्तों में सबसे बुज़ुर्ग हैं।ये अल्लाह के पैग़ाम को उसके पैग़म्बरो तक पहुंचाया करते थे। हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सललाहोअलैह वसल्लम पे क़ुरान उन्हीं के ज़रिए नाज़िल हुआ। चूंकि अब नबुवत का सिलसिला ख़तम हो चुका है और आख़िरी रसूल नबी करीम सललाहोअलैह वसल्लम आ‌ चुके हैं इसलिए हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम का काम भी ख़तम हो गया। 

 हज़रत मिकाईल अलैह सलाम 

ये दूसरे मशहूर फ़रिश्ते हैं इनका काम मख़लूक को रोज़ी बहेम पहुंचाना है,ये अल्लाह के हुक्म से हवा चलाते हैं , पानी बरसाते हैं। और तमाम जानदारो को रिज़्क पहुंचाते हैं। बाक़ी अगले बाब में,,,,,,,,.............

हज़रत इसराफ़ील अलैहिस्सलाम 

इनके ज़िम्मे सूर फूंकना है। क़यामत ‌के दिन ये सूर फ़ूकेंगें ।उसकी‌ आवाज़ बड़ी भयानक होगी । सूर की पहली आवाज़ पर सारी दुनिया ग़ारत हो जायेगी। इंसान, जिन्नात, चरिन्द व परिन्द ग़र्ज सारे जानदार मर जायेंगे। जब हज़रत ‌इसराफ़ील अलैहिस्सलाम दूसरी मर्तबा सूर फ़ूकेंगें तो‌ अगले पिछले सारे इंसान ज़िन्दा ‌हो‌ जायेगें और मैदाने महशर की तरफ़ दौड़ कर जायेंगे।

हज़रत इज़राइल अलैहिस्सलाम 

ये जानदारो ‌की जान निकालने के लिए मुकर्रर किए गए हैं लेकिन अपनी मर्ज़ी से एक चींटी को भी नहीं मार सकते। अल्लाह पाक ने हर एक की मौत का वक़्त मुकर्रर कर दिया है और जब भी किसी का वक़्त पूरा हो जाता है हज़रत इज़राइल अलैहिस्सलाम अल्लाह के हुक्म से फ़ौरन उसकी जान निकाल लेते हैं उन के साथ दूसरे मददगार फ़रिश्ते भी हैं जो उनके काम में हाथ बंटाते हैं। अल्लाह के नेक बन्दों की‌ जान आसानी से और गुनाहगारों की सख़्ती से निकालते हैं। बाक़ी अगले बाब‌ मे ................

करामन कातिबैन, और मुनकिर व नकीर ये अगला‌‌ बाब‌ है ''''''

अल्लाह ने हर शख़्स के साथ दो दो फरिश्ते लगा रखे हैं जो हर वक़्त उन के अच्छे और बुरे कामों को लिखते रहते हैं, इसलिए उनको करामन कातिबैन यानि लिखने वाले बुजुर्ग फरिश्ते कहा‌ गया है। जब क़यामत के दिन तमाम लोग ख़ुदा की अदालत में हाज़िर होंगे तो ये फरिश्ते उन का नाम‌ ऐ आमाल पेश करेगें।

मुनकिर व नकीर

ये दो फ़रिश्ते सवाल व जवाब के लिए मुकर्रर किए गए हैं। मइयत को कब्र में दफ़न‌ करने के बाद अचानक पहुंच जाते हैं, उन की शक्ल व सूरत ग़ैर मानूस होती हैं इसी लिए उन को मुनकिर व नकीर यानि‌अजनबी फ़रिश्ते कहा गया है 

मुनकिर व नकीर

इन फ़रिश्तो का पहला सवाल ये होता है

- मन‌ रब्बुका (तेरा रब कौन है)

अगर मरने वाला मुसलमान है तो कहता है

- रब्बी अल्लाहू (मेरा रब अल्लाह है)

- फ़िर पूछते हैं 

- मा दीनुका (तेरा दीन क्या है)

- तो वो कहता है

- दीनीअस सलामो (मेरा दीन इस्लाम है)

- फ़िर रसुल्ललाह सल्लाहो अलैहि वसल्लम के बारे में पूछते हैं 

-मन हाज़ा रजलुल लज़ी बुइसा फ़ीकुम

(जो शख़्स तुम्हारे दरमियान भेजा गया था उसके बारे में तुम्हारा क्या ख़्याल है)

-यही वो कहता है कि वो ख़ुदा के रसूल मुहम्मद सल्लाहो अलैह वसल्लम हैं। फ़िर फ़रिश्ते सवाल करते हैं --

-वमा युदरिका (तुम्हें कैसे ‌मालूम हुआ )

-- मुसलमान कहता है -- मैंने अल्लाह की किताब पढ़ी, उस पर ईमान लाया और उसकी तसदीक़ की।

इस के बरअक्स‌ काफ़िरान‌ सवालों के जवाब ‌में कहेगा "

हाय अफ़सोस मैं कुछ नहीं जानता।"

रिज़वान व‌ मालिक 

जन्नत की‌ देखभाल और निगरानी के लिए रिज़वान और दोज़ख़ के लिए मालिक नाम के फ़रिश्ते मुकर्रर हैं, इन फ़रिश्तों के अलावा कुछ फ़रिश्ते ऐसे भी हैं जो हमारी नमाज़ो और ज़िक्र व फ़िक्र की मजलिस में हाज़िर रहते हैं ताकि ये उन मजलिसों में शरीक होने वाले की अल्लाह के सामने गवाही दें । ग़रज़ तरह तरह के फ़रिश्ते हैं जो अपने रब के हुक्म पर चलते हैं, और अपने फ़राइज़ को निहायत उम्दगी से अन्जाम देते रहते हैं। पिछले बाब का‌ आख़िर,,,,,,,,

ईमान बिल कुतुब

ईमान बिल कुतुब यानि अल्लाह की किताबों पर‌ ईमान लाना । ईमान‌ मुफ़सिल में आसमानी किताबों का भी‌ तज़किरा आया है।

और उन पर भी हर‌ मुसलमान का ईमान लाना ज़रूरी है। अल्लाह तबारक तआला ने इन्सान को पैदा करके यूहीं नहीं छोड़ दिया कि वो जो चाहे अपनी‌ ख़्वाहिश के मुताबिक़ करता रहे और अपने नफ़्स का‌ ग़ुलाम बना रहे। ये भी अल्लाह रब्बुल ‌इज़्ज़त का बहुत बड़ा एहसान है कि उस ने हमारी हिदायत और रहनुमाई के लिए हर ज़माने और हर‌ क़ौम में किताबें नाज़िल कीं और साथ ही साथ पैग़म्बर और नबी भी भेजे ताकि वो बतला दें कि दुनिया की ज़िंदगी किस‌ तरह ग़ुज़ारिनी चाहिए।

 ईमान बिल कुतुब

जिन मशहूर आसमानी किताबों‌ का नाम क़ुरान ‌मजीद‌ में आया है वो हस्ब ज़ेल हैं,,,,,,,

तौरेत

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर नाज़िल हुई , कुरान मजीद में बतलाया गया है, कि ये किताब अपनी असल‌ सूरत में बाक़ी नहीं , यहूदियों ने‌ इसमें बहुत सी‌ बातें अपनी तरफ से मिला दीं और बहुत सी सच्ची बातों को हज़फ़ कर दीं , ख़ुद‌ यहूदी और ईसाई भी ये तसलीम करते हैं,कि तौरेत में काफ़ी तब्दीलियां कर‌‌ दी गई ‌हैं, अब ये मुस्तनद कलाम इलाही नहीं है।

ज़बूर

ये हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम पर नाज़िल हुईं थी, यहूदियों ने इस किताब के साथ भी वही सुलूक किया, इस की‌ इबारतों को बदल दिया,और शरारत से इसकी असल‌ इबारतों को मसनह कर दिया, लिहाज़ा अब‌ ये‌ किताब भी‌ क़ाबिले एतबार नहीं।

इंजील

ये किताब हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को दी गई थी, मगर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को उठा लिए जाने के बाद ईसाईयों ने इसकी तालीमात पर अमल‌ करना छोड़ दिया शरपसन्दों ने इसमें अपनी‌ तरफ़ से इधर उधर की बातों को शामिल कर दिया, च़ुनान्चे ये किताब भी‌ मोतबर नहीं रही, इस वक़्त ईसाईयों के पास जो इंजील है वो असल‌ ज़बान में बाक़ी नहीं।

सहीफ़े

छोटी आसमानी किताबों ‌को सहीफ़े कहते हैं, बड़ी आसमानी‌ किताबों के अलावा इन्सानों की रहनुमाई ‌के लिए छोटी छोटी आसमानी किताबें भी नाज़िल हुईं, मसलन‌ साहफ इब्राहिम व मूसा। साहफ जमा है सहीफ़ा ‌। यानि वो छोटी किताबें जो हज़रत इब्राहीम और मूसा अलैहिस्सलाम पर नाज़िल हुईं। ये किताबें अब दुनियां ‌मे मौजूद नहीं।

क़ुरान मजीद

ये ख़ुदा की आख़िरी किताब हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लाहो अलैह वसल्लम पर नाज़िल हुई , दुनियां में सिर्फ़ यही आसमानी किताब ऐसी है जो‌ अपनी असली हालत में मौजूद है, आज तक उसमें कोई तब्दीली नहीं हुई, और ‌न क़यामत तक हो सकती है। क्योंकि ख़ुद अल्लाह ने इसकी हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी ले ली है, यही वजह है‌ कि आज दुनियां भर में करोड़ों की‌ तादात में क़ुरान मौजूद है मगर किसी इबारत और तरतीब में ज़र्रा बराबर फ़र्क नहीं ‌ है ये अरबी ज़बान में नाज़िल हुआ और अब तक उसी ज़बान में है। इस‌ किताब में पिछली तमाम किताबों की ख़ूबियां जमा कर दी गयीं हैं, अब ये किताब क़यामत तक सारे इन्सानों की‌ रहनुमाई करती रहेगी ,दूसरी आसमानी किताबें किसी‌ ख़ास क़ौम और एक‌ मख़्सूस मुद्दत के लिए नाज़िल की‌ गई थीं इसलिए अब उनकी‌ ज़रूरत बाक़ी नही रही। 

      क़ुरान मजीद सारी‌ दुनियां के इन्सानों के लिए सर चश्मा हिदायत है और हर ज़माने में इससे हिदायत हासिल होती रहेगी। लेकिन इस किताब से वही लोग हिदायत व रहनुमाई हासिल करते हैं जिनमें लाज़मी तौर पर छह सिफ़तें पायी जाती हैं, जैसा कि‌ पारा अव्वल के आग़ाज़ ही में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है कि  

        "अलिफ़,लाम,मीम " ये वो किताब है जिसमें कोई शक नहीं ये किताब उन परहेज़ गारों को हिदायत देती है जिन में मंद दरजा ज़ेल‌ ख़ूबियां पायी जाती हैं ----------

1. जो ग़ैब पर ईमान लाते हैं

2. जो नमाज़ क़ायम करते हैं

3. ख़ुदा ने जो रिज़्क‌ उनको दिया है उसमें से ख़ुदा की‌ राह में ख़र्च    

     करते हैं

4. क़ुरान पर ईमान लाते हैं

5. जो किताबें क़ुरान से पहले नाज़िल की‌ गईं थीं उन पर भी‌     

    ईमान लाते हैं

6. वो लोग‌ जो आख़िरत पर यक़ीन रखते हैं

      ऐसे लोगों को ख़ुदा ने बशारत दी है कि वो राहे रिसालत पे हैं और फ़लाह पाने वाले हैं।

ईमान बा‌ रिसालत

ख़ुदा के तमाम रसूलों पर ईमान लाने को ईमान बा रिसालत कहते हैं। रिसालत के मानी पैग़ाम पहुंचाना है तमाम रसूलों का ये काम था कि अल्लाह का पैग़ाम उस के बन्दों तक पहुंचां दें । रिसालत और नवुब्बत का ‌सिलसिला‌ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से शुरू हुआ और‌ हज़रत मुहम्मद सल्लाहो अलैहिस्सलाम पर‌ ख़तम हुआ। हर‌ क़ौम और ज़माने‌ में पैग़म्बर आये लेकिन‌ सब के नाम और उनकी सही तादात मालूम नहीं। जिन पैग़म्बरों का तज़किरा क़ुरान पाक में किया गया है उन पर ईमान लाना ज़रूरी है और जिन‌ का तज़किरा नहीं किया गया उन के लिए ताकीद की गईं है । क़ुरान‌ मजीद में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ,हज़रत नूह अलैहिस्सलाम,हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ,हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम, हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और‌ हमारे नबी‌ हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लाहो अलैहि वसल्लम के अलावा और भी बहुत से‌ नबियों का‌ नाम मिलते हैं, उन‌‌ सब‌ पर‌ ईमान लाना ज़रूरी है रिसालत का इन्कार क़ुफ़्र है क्योंकि ये सब अल्लाह के सच्चे रसूल उनके पाकीज़ा बन्दें थे, सभी ने लोगो ‌को बुराई से रोका और नेकी की तालीम दी गुमराह इन्सानों को सीधे रास्ते लगाया और ये बताया कि ख़ुदा किस बात से ख़ुश होता है, और किस बात से नाराज़ । तमाम अम्बिया ख़ुदा के एहकाम पर ख़ुद अमल करते हैं, और दूसरों को ख़ुद इसकी दावत देते हैं । सारे नबियों की ख़ास तालीम यही थी कि इन्सान सिर्फ़ एक ख़ुदा की इबादत करे और जो‌ कुछ मांगना हो उसी से मांगे, देवी, देवताओं और बुतों की परस तिश न‌ करे।

नवुब्बत मुहम्मदी 

 तमाम रसूलों पर ईमान लाने के साथ साथ हमें इस बात पर पुख़्ता यक़ीन रखना चाहिए की हज़रत मुहम्मद सल्लाहो अलेह वस्सलाम अल्लाह के आख़िरी नबी हैं, आप के बाद कोई नबी कयामत तक आने वाला नहीं आप सारी दुनियां के इंसानों के लिए नबी बनाकर भेजे गए, आपकी तालीम रहती दुनियां तक काम आने वाली है ,आप की लाई हुई किताब क़ुरान मजीद अपनी असली सूरत में मौजूद है, इसके अलावा आपकी सीरत आप के इरशादात और आपकी ज़िंदगी का इल्मी नमूना ग़र्ज दुनियां ‌में हर चीज़ मौजूद और महफ़ूज़ है। गोया आप ज़िन्दा पैग़म्बर हैं, आप ही की पैरवी में अब इन्सानों की निजात है।

ईमान बिल आख़िरत 

हर मुसलमान को इस बात पर पुख़्ता यकी़न रखना चाहिए कि‌‌ एक दिन अल्लाह तआला तमाम दुनियां और उसकी मख़लूक़ को फ़ना कर देगा। जिस दिन‌ फ़ना करेगा उसको रोज़ ए क़यामत कहते हैं। उसके बाद हर एक को दोबारा ज़िन्दगी बख़्शेगा और सब मैदाने हश्र में हाज़िर किए जाएंगे उस दिन सबका नामये आमाल ख़ुदा की अदालत में पेश होगा। हर शख़्स के अच्छे बुरे आमाल तौलें जायेंगे जिन‌ की नेकियां मीज़ान में वज़नी होगी उनका नामये आमाल उनके दाहिने हाथ में दिया जायेगा और वो जन्नत में जाएगा। और जिनकी बुराइयों का पल्ला भारी होगा उनका नामये आमाल उनके बायें हाथ में दिया जायगा और वो दोज़ख़ में डाले जायेंगे। कुफ़्फ़ार व मुशरिकीन तो हर हाल दोज़ख़ ही में जायेगें।

जन्नत

जन्नत के माइने हरा भरा बाग़ । उसमें नहरें बह रही‌ होगीं । हर‌ क़िस्म की‌ नेमतें होगीं, शानदार महल होंगे, अहले जन्नत जो चीज़ें चाहेंगे उनको पेश की‌ जायेंगी। कौसर व तसनीम जन्नत की ख़ास नहरें हैं, जन्नत की सबसे बड़ी नेमत अपने रब का‌ दीदार ‌है। हर जन्नती को अल्लाह तआला का‌ दीदार हासिल होगा‌।जन्नत की‌ नेमतें कभी‌ ख़त्म न होंगी और जन्नत ‌वाले उसमें हमेशा हमेशा रहेंगे।

दोज़ख़

दोज़ख़ एक ऐसा मक़ाम है जिसमें तरह तरह के आज़ाब होंगे।

सांप, बिच्छू और बड़े बड़े असदहे होंगे, भड़कती हुईं आग होगी।

कडुवे और ज़हरीले फ़ल खाने को मिलेंगे। पीने‌ के लिए खून पीप खोलता हुआ पानी मिलेगा।दोज़खी घबरा कर मर जाना पसन्द करेंगे लेकिन उनको मौत न आएगी, न वो मरेंगें और न और जियेंगे बल्कि मौत और ज़िन्दगी ‌की‌ कश्मकश में मुब्तिला होंगें।

अल्लाह तबारक तआला हम सब को दोज़ख़ के आज़ाब से बचाए ,और नेक कामों की तौफ़ीक अता करे, ताकि हम जन्नत के मुस्तहक़ हों।

ईमान बिलक़दर

ईमान बिल क़द़र यानि तक़दीर पर ईमान लाना । हमको यक़ीन रखना चाहिए कि दुनियां में जो कुछ होता है वो ‌अल्लाह के हुक्म से होता है। कोई काम उसकी मर्ज़ी ‌के‌ ख़िलाफ़ नहीं ‌हो‌ सकता । हर काम उसके बनाये हुए क़ानून और ज़ाब्ता के मुताबिक़ होता है। क़ुरआन पाक में आया है कि 

"वा ख़लका कुल्ला‌ शैइन फ़क़ादरहू तक़दीर" 

यानि उसने हर चीज़ को पैदा‌ किया और उसकी‌ तक़दीर मुकर्रर की। तक़दीर के मानी‌ हैं ‌अन्दाज़ा‌ करना।

दूसरी जगह क़ुरआन मजीद में लिखा है 

"इन्ना कुल्ला शैइन ख़लकनाहू बेक़द्र "

यानि हम ने हर चीज़ को एक तक़दीर के साथ पैदा किया ।

अल्लाह तआला ने हर‌ चीज़ की एक तक़दीर मुकर्रर की, और वो चीज़ अपनी तक़दीर के मुताबिक़ अपना काम पूरा करके ख़त्म हो जाती है । लेकिन हर शख़्स और हर शय का इल्म सिर्फ़ अल्लाह को है।इसलिए हमें तक़दीर के मसले पर बहस मुबाहिसा नही करना चाहिए । तक़दीर पर ईमान लाने वाले अल्लाह ‌की रज़ा पर राज़ी रहते हैं और ये यक़ीन रखते हैं कि अल्लाह को जो मन्ज़ूर होता है वही होता है। अल्लाह तआला अपने बन्दे के हाल व मुस्तक़बिल से पूरी तरह बाख़बर है।

एख़लास व नियत से मुतालिक़ चन्द हदीस 

रसूल करीम सल्लाहो अलैह वसल्लम के‌ क़ौल व फ़ैल को हदीस कहते‌ हैं। एख़लास नियत के मानी नियत व इरादा में ख़ुलूस का पाया जाना है। यानी आख़िरत में नेक आमाल का अजर उस वक्त मिलेगा जब वो सिर्फ़ ख़ुदा की ख़ुशनूदी हासिल करने के लिए किया गया हो ।

हदीस :- हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ी० अन्हू कहते हैं कि रसूल्लाह सल्लाहो तआला व अलैह वसल्लम ने फ़रमाया, *आमाल का दारोमदार सिर्फ़ नियतो पर है और आदमी को वही कुछ मिलेगा जिस की उसने नियत की थी तो जिस ने अल्लाह और उसके रसूल सल्लाहो वसल्लम के लिए हिजरत की तो उस‌ की‌ हिजरत तो वाक़ई अल्लाह और उसके रसूल के लिए होगी लेकिन जिस‌ने दुनियां हासिल करने या किसी औरत से शादी करने के लिए हिजरत की तो उसकी दुनियां या औरत के लिए ही‌ शुमार होगी "।

 हज़रत अबु हुरैरा रज़ी० अल्लाह तआला अन्हु बयान‌ करते हैं कि रसूल्लाह सल्लाहो तआला व अलैह वसल्लम ने फ़रमाया:-

'अल्लाह तुम्हारी शक्ल व सूरत और तुम्हारी दौलत को नहीं देखता बल्कि वो तुम्हारे दिलों और आमाल‌ को देखता है"।

इस्लाम के कलमें मय तर्जुमा 

इस्लाम में मंदरजा ज़ेल कलमात को बड़ी अहमियत हासिल है क्योंकि इन‌ कलमों में अल्लाह ‌तआला की वहदानियत और उसकी सफ़ात का तज़किरा किया गया है। चूंकि ये कलमें कुरान मजीद की मुख़्तलिफ आयतों से अख़ज़ किये गये हैं इसलिए इसमें किसी शक और शुबा की गुंजाइश नहीं । हर मुसलमान मर्द औरत को चाहिए कि इन‌ पर यक़ीन करे।

पहला कलमा तैय्यब-

"ला इलाहा इल्लल्लाह,मुहम्मदुन रसुल्ललाह"।

तर्जुमा:- अल्लाह के सिवा कोई माबूद नही, मोहम्मद सल्लाहो व अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं।

दूसरा कलमा शहादत-

"अशहदुन अन ला इलाहा इल्लल्लाह वअशहदुन अन्ना मोहम्मदन वाअबदहु वा रसूलहू"।

तर्जुमा:-मैं गवाही देता हूं/देती हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नही और मैं गवाही देता हूं/देती हूं कि मोहम्मद सल्लाहो व अलैहि वसल्लम अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल हैं।

तीसरा कलमा तजवीद -

"सुब्हान‌ अल्लाहे वलहम्दुलिललाहे वला इलाहा इल्लललाहू वल्लाहू अकबरू वला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिललाहिल अलयल अज़ीम "। तर्जुमा:- अल्लाह हर ऐब से पाक है तमाम तारीफ़ अल्लाह के लिए है अल्लाह सब से बड़ा है कोई ताक़त सिवाए अल्लाह के नहीं हैं वो बुलन्द व बरतर‌ और अज़मत वाला है ।

चौथा कलमा तौहीद -

"ला इलाहा इल्लललाहू वहदहू ला शरीका लहूलहुलमुल्कु वलहुलहम्दु यूही वयूमीतो बियादिहिल ख़ैर वहुवा अला कुल्ले शइन क़दीर"। तर्जुमा:- अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं ,वो अकेला है उसका कोई शरीक नहीं। बादशाहत उसी की और तमाम तारीफ़ उसी के लिए है । ज़िन्दगी और मौत उसी के अख़्तियार में है उसी के कब्ज़े में भलाई है और ‌वही‌ हर चीज़ पर कादिर है।

पांचवां कलमा रद्दे कुफ्र -

"अल्ला‌ हुम्मा इन्नी आउज़बिका मिन अन उशरिकबिका शैअन वा अना आलमो बिही वाअसतग़फ़िरूका लेमाला‌ आलमो बिही तुबतु अन्हू वा‌ तब्बरातु मिनल कुफ़रे वलमाआसी कुल्लेमा असलमतो वाआमनतु वाअक़ूलु "ला इलाहा इल्लललाहू मुहम्मदुन रसुल्ललाह"। तर्जुमा:- खुदावन्द ! मैं पनाह मांगता हूं/ मांगती हूं इस बात से कि‌ मैं जानबूझ कर तेरे साथ किसी को शरीक ठहराऊ और मैं इस बात की माफ़ी चाहता हूं/चाहतीं हूं जिस का मुझे इल्म नहीं है मैं तौबा करता हूं/करती हूं और अपने आप को अलाहदा करता हूं/करती हूं कुफ्र और मआसियत की तमाम शक्लों से, मैं अपने आप को ख़ुदा के सुपुर्द करता हूं /करती हूं और ईमान लाता हूं/लाती हूं और इस‌ बात का इक़रार करता हूं /करती हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।

ईमान मुज़म्मिल,

"आमन्तु बिल्लाहि कमा हुवा बेअसमाएहि वासिफ़ातेहि वकाबिल्तु जमिहा अहकामिही"

तर्जुमा: मैं ‌ईमान‌ लाया/लाई अल्लाह पर जैसा‌ कि वो अपने नामों और सिफ़तों से मुन्सिफ़ है और उसके तमाम अहकाम को क़ुबूल किया ।

ईमान मुफ़स्सिल 

"आमन्तु बिल्लाहि वा मलायकतहि वा कुतुबिही वा रूसुलिही वलयो मल आख़िरी वल क़दिरी वल ख़ैरही वशर्रिही मिनललाही तआला वलबाअसी बआदल "

तर्जुमा: मैं ‌ईमान‌ लाया/लाई अल्लाह पर उसके फ़रिशतों पर, उसकी किताबों पर, उसके रसूलों पर और आख़िरत (क़यामत) के दिन पर और ‌इस बात पर‌‌ कि अच्छी और बुरी तक़दीर अल्लाह की तरफ़ से होती है और इस पर कि मरने के बाद दोबारा उठाया जाता है ।










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