साबरी मंज़िल पे जश्ने साबिर पाक की महफ़िल
हज़रत मख़दूम अलाउद्दीन साबिर कलियरी रहमतुल्लाह अलैह के सलाना उर्स के मौक़े पर 17 रबीउल अव्वल दिन सनीचर हज़रत जनाब मुईज़ उद्दीन अहमद सागरी चिश्ती निज़ामी (साहिबे सज्जादानशीं ख़ानकाह ए सागरया) के वालिद मोहतरम जनाब मुईन खां साहब मरहूम के मकान साबरी मंज़िल पे जश्ने साबिर पाक की मनाया गया।रात में महफिले क़व्वाली हुयी।
जिसमें तमाम अकीदत मंद लोगों ने शिरकत की
साबिर पाक
अलाउद्दीन अली अहमद साबिर, (Alauddin Ali Ahmed Sabir), (صابر پیا साबिर पिया) जिन्हें साबिर कलियरी व साबिर पाक के रूप में भी जाना जाता है, 13 वीं शताब्दी में एक प्रमुख दक्षिण एशियाई सूफी बुज़ुर्ग थे। वह फ़रीदुद्दीन गंजशकर (1188-1280), [2]के मुतावल्ली और चिश्ती सिलसिले के सबरीया मसलक में सबसे पहले थे। इनकी दरगाह (सूफी मकबरा) हरिद्वार के निकट पिरान कलियर शरीफ गांव में है।
दीन इस्लाम
आपके लक़ब
मखदुम-उल-आलम, सबिर पिया, मखदूम, गंज ए शकर के लाल, अली अहमद, बाबा सबीर, चराग ए चिश्त
यौम ए पैदाईश
569 हिज़री/1196 ईस्वी
19 रबि उल अव्वल
हेरात, अफगानिस्तान
यौम ए विसाल
690 हिज़री/1291 ईस्वी
11 रबि उल अव्वल
पिरान कालियार शरीफ, रुड़की , भारत
ख़ानकाह
पिरान कलियर शरीफ, रुड़की
उपाधि साबिर पिया
पीरो मुर्शिद बाबा फरीद
जानशीं शमसुद्दीन तुर्क पानीपती, हैदर शाह पानीपती
सैयदना मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर कलियारी उनके वालिद मोहतरम सैयद अब्दुल रहीम, ग़ौस उल आज़म दस्तगीर सैयदना शेख अब्दुल कादिर अल गिलानी के पोते थे। उनकी मां जमीला खातून, बाबा फरीद की बड़ी बहन थीं। उनके वालिद ने उन्हें अलाउद्दीन नाम दिया था। "साबिर" बाबा फ़रीद गंज ए शक्कर ने लक़ब दिया था । चूँकि उनकी कब्र कल्यार शरीफ़ में है, इसलिए उन्हें कल्यारी के नाम से भी जाना जाता है।हज़रत शेख अलाउद्दीन अली अहमद अस-साबिर (رحمتہ اللہ علیہ) एक इस्लामी सूफी थे। आप ख़्वाजा गरीब नवाज़ अजमेरी (رحمتہ اللہ علیہ) के चिश्ती सिलसिले में थे । आप एक मशहूर सूफी थे और हिंदू और मुसलमान दोनों ही आपसे अक़ीदत रखते हैं। जिस जगह पर आप आराम फ़रमा हैं वह उत्तराखंड भारत के रुड़की शहर में कलियार है।
ग़ौस पाक (رحمتہ اللہ علیہ)
के बेटे हज़रत सैफ़-उद-दीन अब्दुल वहाब (رحمتہ اللہ علیہ) का जन्म 17 शाहबान 512 हिजरी को शाम की दो नमाज़ों मगरिब और ईशा के बीच हुआ था। ग्यारह साल की उम्र में उन्होंने ग़ौस पाक (رحمتہ اللہ علیہ) से सारी दुनियावी और दीनी इल्म हासिल किया और बाद में खुद तालीम देना शुरू किया। उनके मुरीदों को साबरी भी कहा जाता है। हर साल कलियर में लाखों लोग उनका उर्स मनाते हैं।
उन्होंने अपनी ज़िंदगी के कई साल बाबा फ़रीद (رحمتہ اللہ علیہ) के साथ बिताए और बाबा फ़रीद (رحمتہ اللہ علیہ) से आपने इल्म लदुन्नी हासिल किया । फिर बाबा फ़रीद मसूद गंजे शकर (رحمتہ اللہ علیہ) ने उन्हें खलीफा (उत्तराधिकारी) बनाया और उन्हें कलियार (उत्तराखंड प्रांत में मौजूद एक भारतीय शहर) भेज दिया। उस वक़्त राजा अलाउद्दीन खिलजी था। उनका व्यक्तित्व कई चमत्कारों का स्रोत था। उनकी कब्र को "पीरान-ए-कलियार शरीफ" के रूप में भी जाना जाता है जो गंगा नदी के किनारे कलियार में और "रुड़की" से सात किलोमीटर दूर है। उनका दरगाह दुनिया भर के सूफ़ी ,ख़लीफ़ाओ, अनुयायियों और लोगों के लिए दर्स का दरबार है। उनके बारे में और उनके नाम से जुड़ने की वजह इस सिलसिले को “चिश्ती साबरी सिलसिला” के नाम से जाना जाता है।
उर्स मुबारक
हर साल उर्स कलियर शरीफ में रबी-उल-अव्वल के मुबारक महीने में 13, 14 और 15 तारीख की तीन मुख्य तारीखों को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। रबी-उल-अव्वल के चाँद के दीदार के बाद, यहां के सज्जादा अपने पुराने घर (कलियार गाँव में) जाते हैं। कमरे के अंदर, वह ख़तम शरीफ़ पढ़ते हैं और अपने सिर पर एक थाली रखकर बाहर निकलते हैं। थाली में मेहँदी और डोरी होती है। इसके बाद वह दरगाह जाते हैं और फातिहा पढ़ते हैं। इसके बाद डोरी सभी को बाँटी जाती है। दरगाह पर कव्वाली-ए-मखदूम अली अहमद साबिर कलियरी (رحمتہ اللہ علیہ) (हज़रत साबिर पिया पर सलाम) होती है और हर तरफ़ नूर ही नूर बरसता है,रहमत बरसती हैऔर इससे यहां आने वाले अक़ीदतमंद और ज़ायरीन तमाम फ़ैज़ से मालामाल होते हैं।
0 Comments